मेरी आशा -मनीषा
किश्मत की लकीरो को देखना ,
और मुस्कुराते हुए सोचना,
क्या ले आ पायेगी ये जिसे मि कह सकू अपना ,
सच था या सपना ,
लिख रहा हु मई अपना ,
लाखो करोड़ो की ढेर में
मुझे मिला कोई अपना सूरत वही सीरत वही ,
आँखों में थे जिसके मेरे सपना ,
सच ही हुआ ,मेरे लकीरो का लड़ना ,
दोनों हाथो को मिलाकर एक करना ,
और चाँद जैसे लकीरो पर ततकना ,
आज मेरे पास है जिसे मैं अपने ,
तन मन में बिठा कर कहता हु अपना। ...
Love u swthrt,,,,muuhh..
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